ई-लेखा

जाल मंच पर ई-लेख प्रकाशन का दूसरा प्रयास ।

Sunday, January 23, 2005

किसना - ना रे ना

यहाँ मोहाली में ठंड काफी हो गई है । कहीं घूमने नहीं जा सकते ।
सोचा क्यूँ ना फिल्म देखी जाए !
श्रीमती जी भी काफी दिनों से रट लगाएँ हुईं थी। सोचा एक पंथ दो काज वाली बात हो जाएगी ।
तो पिकाडिली सिनेमा घर में 3-6 का शो देखने चले गए। नयी पिक्चर "किसना" रिलीज हुई थी।
बिग बैनर सुभाष घई की पिक्चर थी तो काफी आशाएँ थी । पर सारी की सारी धूमिल हो गईं ।
इतनी अझेल थी कि हम तो खत्म होने से आधा घंटा पहले ही हाँल से बाहर आ गए ।
श्रीमती जी का गुस्सा देखते ही बनता था - कहने लगीं अगर घई महाशय कहीं मिल जाएँ तो दो कान के नीचे लगा कर पूछेंगे, क्या सोच कर ये बंडल बनाया ।।
किसना - ना रे ना

Wednesday, January 19, 2005

ई-मेल से ई-लेख तक

क्या आप जानते हैं कि आप ई-मेल से ई-लेख अपने चिट्ठे पर भेज सकते हैं?

अपने चिट्ठे पर Settings->Email पर जाँए और Mail-to-Blogger Address पर कोई मनपसन्द नाम डब्बे में भर दें।

Publish पर टीका लगा दें और Save Settings बटन को धीरे से दबा दें ।

अब बस ऊपर वाले Mail Address पर अपनी मनपसन्द बाती लिख कर मेल कर दें ।

आपका मेल अब लेख के रूप में चिट्ठे पर प्रकाशित हो गया है ।

इससे नेट के खर्चे मे कटौती की संभावना है क्योंकि मेल तो आप कभी भी लिख सकते हैं ।।

ये लेख ऊपर दिए गए निर्देशों का एक ई-जीव उदाहरण है ।

Tuesday, January 18, 2005

सिर्फ़ नौटङ्की ही क्यों?

अब इन्हें कोफ़्त है कि नौटङ्की अश्लील क्यों हो गई। नौटङ्की अकेली है क्या? क्या नौटङ्की लगा रखी है!

Monday, January 17, 2005

'ईरान में गुप्त अभियान पर हैं अमरीकी कमांडो'

काश ये झूठी खबर हो ।

अपने चिट्ठे पर दूसरों के चिट्ठों की कड़ियाँ डालना

अब चूँकि गुलाबी भाई मुझे सहचिट्ठाकार बनाने की ग़लती कर चुके हैं, मैं इस चिट्ठे को ट्यूटोरिल भूमि बनाता हूँ, ताकि उन्हें अहसास हो कि उन्होंने मुझे न्यौता दे कर कितनी बड़ी भूल की है।
तो आज का पाठ है कि आप अपने चिट्ठे पर किसी और के चिट्ठे की कड़ी कैसे डाल सकते हैं?
और इसका जवाब यह है कि ब्लॉगर पर जा कर अपने चिट्टे की "Change Settings" पर चटका लगाइए। वहाँ से आप को "Templates" यानी खाके वाला पान मिलेगा। इस पर आपको एक "End Sidebar" दिखेगी। उसके ऊपर, आपको यह चेंपना होगा -
<ul>
<li><a href="http://ekchittha.blogspot.com">एक चिट्ठा</a></li>
<li><a href="http://dusrachittha.blogspot.com">दूसरा चिट्ठा</a></li>
</ul>

बस फिर "Save" और "Republish" कर दें और अपने चिट्ठे का पन्ना ताज़ा करें।

अष्टे।

माइलस्टोन

प्रिय आलोक, मिर्ची सेठ, ठाकुर व जितेंद्र ,
हौसला बढ़ाने व प्रशंसा के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।।
लगता है इस बार पहले प्रयास की तरह ई-लेखन से नौ दो ग्यारह नहीं हो जाऊँगा ।।

आलोक, अगर मुझे पहले वाले का लॉगिन पता होता तो दूसरे की नौबत ही नहीं आती ।
मि. सेठ, सही पहचाना , मैं उसी कम्पनी में कार्यरत हूँ जिसमें आलोक जैसी विराट प्रतिभा विद्यमान है ।

जितेंद्र भाई, जीवन के प्रथम 18 साल जयपुर में गुजरे, उसके बाद बनारस (बी. एच. यू), फिर कटनी, बँगलौर और अब मोहाली । आगे जहॉ रोजी रोटी लिखी हो... । आखिर हम मजदूर जो ठहरे, ज्ञानी मजदूर ( नोलिज वर्कर ) ।

आज का दिन मेरे ई-लेखन में मील का पत्थर है । एक तो यह चौथा ई-लेख है । दूसरा इतने मित्रगणों से पहचान व उनका सहयोग । पर चूँकि सब सॉफ्टवेयर वाले हैं, अत: इसे "माइलस्टोन" कहना ज्यादा ठीक होगा । कुछ लोग इससे शायद "ईजिली रिलेट" कर पायेंगे ।

रामराम ।

Saturday, January 15, 2005

तीसरा दिन

हुर्रे ।।
तो मैं दो से आगे जा पाया ।।
आज घर पर दिन में तिल के लड्डू व रात को पाव भाजी खायी ।। मज़ा आ गया ।।
प्रोग्राम तो जयपुर जा कर पतंग उड़ाने का था, पर ईश्वर को शायद ये मँज़ूर नहीं था ।।
अब अगले साल सही ।।

Wednesday, January 12, 2005

दूसरा दिन

अमरीश पुरी नहीं रहे ।
क्या कोई उनकी जगह ले पाएगा ?

फिल्में जिनमें उन्होंने अभिनय किया - http://www.imdb.com/name/nm0700869/ पर मिलें जाएँगी ।

प्रथम ई-लेख

यह ई-लेखन का दूसरा प्रयास है ।
पहले प्रयास में एक ही लिख कर रह गया ।
आशा है इस बार दो लेखों से आगे जा पाऊँगा ।

कहावत तो सुनी होगी - करत करत अभ्यास के .....

रामराम सा.