ई-लेखा

जाल मंच पर ई-लेख प्रकाशन का दूसरा प्रयास ।

Tuesday, October 25, 2005

मैट्रो - आज तक

कुछ समय पहले मैंने दिल्ली मैट्रो पर एक लेख लिखा था ।
मैट्रो में प्लेटफार्म पर जाने के लिए बैरियर पर लगी स्क्रीन पर अपना टिकिट दिखाना पड़ता है ।
स्क्रीन टिकिट को पढ़ कर गेट खोल देती है । अब किसी को पास चाहिए तो वो क्या करे ।
एक बड़ी टिकिट खरीदे जो धीरे धीरे खत्म होती जाए । नहीं ।
अभी हाल ही में एक और सुखद समाचार मिले ।

आप एक कार्ड, क्रैडिट कार्ड जैसा, खरीद सकते हैं जिसमें कुछ चार्ज रहता है । जैसे जैसे यात्रा करें चार्ज राशि अपने आप घटती है जैसा मोबाइल में होता है । बस आप कार्ड को बैरियर पर दिखा दें । खास बात है कि कार्ड कपड़ों या पर्स में से भी काम करता है । स्त्रियों के लिए कितनी सुविधा - बस पर्स आगे किया और प्रवेश पाया । री-चार्ज करने पर 50 की छूट ।
क्या पता आगे ये आपके मोबाइल से जुड़ जाए, बस मोबाइल दिखाओ और प्रवेश पाओ ।
और अपने आप मोबाइल के बिल में टिकिट किराया आ जाएगा । कोई नगद का झंझट ही नहीं ।
और कोई पहले से टिकिट खरीदने जी जरूरत भी नहीं ।
सुरक्षा की द्रष्टि से बहुत उत्तम है क्योंकि पता किया जा सकता है कि कौन जा रहा है ।

Friday, October 21, 2005

पद बड़ा कि कार्य

हाल ही में इंडिया टुडे में एक लेख आया है कि हैदराबाद के पूर्व पुलिस कमिश्नर रैड्डी ने सरकार के खिलाफ कोर्ट केस किया है ।
आप कहेंगे उसमें नया क्या है , रोज ही होता है ।
नया है कारण और उससे ज्ञात होता देश के रहनुमाओं का स्वार्थ।

कारण है, प्रोटोकोल । यानि राष्ट्रपति जब आऐं तो हाथ मिलाते की कतार में आप कहाँ खड़े हैं ।
कौन कहाँ खडा़ होगा इस बात पर बवाल ।
कुछ समय पहले कोई और इनके आगे खडा़ हो गया जो गलत था और उसकी शिकायत भी हुई ।
पर फिर से वही बात दुहराई गई तो रैड्डी ने दूसरे को धक्का दे खुद को आगे किया ।
चीफ सैकेट्री ने नाराज हो, रैड्डी को चिट्ठी भेज दी । रैड्डी ने कहा, तुम कौन ।
बस, चीफ सैकेट्री बुरा मान गये और रैड्डी को रिटायरमेंट से दस दिन पहले तबादिल कर दिया, बिना आँध्र प्रदेश के डी जी पी को बताए ।
रैड्डी ने केस ठोक दिया ।
आँध्र प्रदेश आजकल नक्सली समस्या से झूज रहा है और कई लोग मारे जा चुके है ।
पर इन बाबूज़ को कौन समझाए । इनका क्या जा रहा है । प्रोटोकोल ज्यादा जरूरी है ।
एक्जैक्टली ।।

Wednesday, October 19, 2005

एफ डी आई - चाही के नाहीं

ये एफ डी आई नाम का जानवर हर देश में मौजूद है , चाहे विकसित हो या विकासशील ।।
भारत के नीति निर्माता तो इसे देश की प्रगति का आधार मानते हैं और प्यार पुचकार में कोई कमी नहीं रखते ।।
पर आखिर ये चाहिए ही क्यों ??
कृपया टिप्पणी करें ।।
मैं इस विषय पर एक बहस शुरू करना चाह रहा हूँ ।।

Tuesday, October 18, 2005

सर उठा के - माई फुट

आजकल एक शीतल पेय का विज्ञापन आ रहा है कि आप सर उठा कर पीओ। और दिखाया जाता है कि सब बोतल को मुँह लगा कर गटागट पी रहे हैं । पर आप कितनी बार सर बिना ऊपर किए बिना चुपचाप स्ट्रा से या गिलास से पी जाते हैं । क्या वो सर झुका कर पीना हुआ ?
क्या कोक पीने से आपका सिर ऊपर होता है ?
क्या बकवास है ?

Sunday, October 16, 2005

झूठ बोलता है

गूगलिस्म के तिलिस्म का कहना है कि उसे हिन्दी के बारे में कुछ पता नहीं है।

Warning: Invalid argument supplied for foreach() in /usr/dbs_share/www/shared/include/googlism.com/private/googlism.inc on line 41
Sorry, Google doesn't know enough about हिन्दी yet.

झूठ बोलता है!
हिन्दी

Thursday, October 13, 2005

अमरीका – कितना मीठा कितना फीका

अमरीका – कितना मीठा कितना फीका
कहते हैं चरित्र की पहचान संकट या विपत्ती के समय होती है ।
हाल ही में अमरीका में आए प्राक्रतिक आपदा के समय वहाँ के वासियों की कारगुजीरियों पर अगर यह सिद्धाँत लागू करें तो आपका निष्कर्ष क्या होगा ?
चाहे आप कोई भी पक्ष की तरफ हों, अब अंकल सैम अपनी नैतिकता व मौलिकता का ढिंढोरा नहीं पीट सकते । पर वे शायद ही आदत से बाज आए, जो है दूसरे के फटे में अपनी टाँग अडाने की । चाहे वह ईराक हो या ईरान या कोरिया । विश्व शाँति के नाम पर सबसे ज्यादा अशाँति तो अंकल फैला रहै हैं । वॉर अगैंस्ट टैरर ।।

हाल ही में “टाइम” पत्रिका में मैं पढ़ रहा था कि हरीकेन के समय “कोंडम” टॉप सैलर थे और तूफान के बाद सबसे पहले और अकेले खुलने वाला प्रतिष्ठान था, सही सोचा, स्ट्रिप बार ।। क्या बात है । चाहे और कुछ हो न हो , रंगीनियाँ तो होनी ही चाहिए, क्या पता कल हो न हो ।।

मैं किसी की बुराई नहीं कर नहीं कर रहा हूँ पर यही कह रहा हूँ कि जब कपडों के अन्दर सभी नंगे हैं तो किसी को अपने कपड़ों पर घंमंड करना कितना ठीक है ।।

इतने दिनों बाद यही विषय ठीक लगा लिखने के लिए ।।
क्या बोला ।। एक्जैक्टली ।।।