तीसरा दिन
हुर्रे ।।
तो मैं दो से आगे जा पाया ।।
आज घर पर दिन में तिल के लड्डू व रात को पाव भाजी खायी ।। मज़ा आ गया ।।
प्रोग्राम तो जयपुर जा कर पतंग उड़ाने का था, पर ईश्वर को शायद ये मँज़ूर नहीं था ।।
अब अगले साल सही ।।
तो मैं दो से आगे जा पाया ।।
आज घर पर दिन में तिल के लड्डू व रात को पाव भाजी खायी ।। मज़ा आ गया ।।
प्रोग्राम तो जयपुर जा कर पतंग उड़ाने का था, पर ईश्वर को शायद ये मँज़ूर नहीं था ।।
अब अगले साल सही ।।
7 Comments:
At 3:32 pm, आलोक said…
ईश्वर को काहे दोष देते हो। घर के इतने करीब, ऐश हो रही है उसके बावजूद! पर मुबारक हो। वैसे आप चाहें तो अपने जालस्थल पर ही अपना चिट्ठा भी डाल सकते हैं। इसकी सुविधा ब्लॉगर देता है। मुबारकबाद फिर से। आह्लाद का सामना करना पड़ रहा है। अब तो टीका टिप्पणी चलती ही रहेगी।
At 3:32 pm, आलोक said…
और नाम भी पसन्द आया।
का लेखा?
ई लेखा।
At 11:45 pm, मिर्ची सेठ said…
भाईसा,
मुबारकबाद आपके ईलेखे पर। लिखते रहिए।
और भी हैं इस चिट्ठों में आशीष कई,
इस आशीष का है रंग-ए-बयाँ और।
गालिब बाबा पक्का कबर में लोट रहें हौंगे।
At 11:48 pm, मिर्ची सेठ said…
अरे अभी देखा आप तो मेरी शिक्षास्थली मोहाली में हैं। मैं शिवालिक फेज़ 6 से पढ़ा हूँ हाए कहाँ गए वो दिन, होस्टल की दिवारें फांदा करते थे। तो आप इन्फी या क्वार्क में हो सकते हैं।
http://pnarula.com
http://hindi.pnarula.com/haanbhai
At 6:48 am, विजय ठाकुर said…
तिल के लड्डू वाह भई वाह, मैने बहुत मिस किये इस बार तो
At 11:06 am, Jitendra Chaudhary said…
ऐ लो...सारे लोग हमारे बधाई के रिकार्ड तोड़ दिये है...काहै किये इ सब...हमरा इन्तजार नाहि कर सकते थे का? किसी को कौनो सबर नाहि......
आशीष भइया, हिन्दी चिट्ठाकारी मे आपका स्वागत है, बड़ा ही रंगीन चिट्ठा है, एकदम पिंक सिटी जैसा, मजा आ गया भई. हिन्दुस्तान मे कहाँ से हो?
At 12:29 pm, Raman said…
स्वागतम् ..
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