ई-लेखा

जाल मंच पर ई-लेख प्रकाशन का दूसरा प्रयास ।

Wednesday, July 13, 2005

अनुवाद बहुत से किए होंगे तुमने

लेकिन लाइवजर्नल का जो अनुवाद का अन्तरापृष्ठ है, उसका कोई मुकाबला नहीं। एक तो यह ऑन्लाइन है, यानि आप दुनिया में कहीं बैठे हों, अनुवाद कर सकते हैं, और दूसरा, इसमें एक ही पन्ने पर सिलसिलेवार कई वाक्य अनुवाद करने के लिए हैं, तो आप तारतम्य बिठा सकते हैं कि क्या अनूदित किया जा रहा है। साथ ही, यदि कोई मूल वाक्य बदल जाता है, तो वह भी दुबारा इसमें आपके सामने आ जाता है, ताकि सब कुछ सामयिक रहे। तो फिर देर किस बात की है? या तो ई-आम खाइए, या फिर ई-गुठलियाँ गिनिए, या फिर दोनो ही करिए! जो भी हो, ई-लेखा जारी रखिए।

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